साहित्य का विश्व रंग 'प्रेम की वह बात' सम्पन्न



एमस्टर्डम। विश्वरंग, हालैण्ड से साझा संसार, वनमाली सृजनपीठ व प्रवासी भारतीय साहित्य शोध केंद्र के 'साहित्य का विश्वरंग' का आयोजन 'प्रेम की वह बात' हाल ही में वरिष्ठ कवि, कथाकार तथा रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे की अध्यक्षता में ऑनलाइन सम्पन्न हुआ।

इस आयोजन में, भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक व विश्वरंग के सह निदेशक लीलाधर मंडलोई की विशिष्ट उपस्थिति के साथ, अमेरिका से  शशि पाधा व श्वेता सिन्हा, दुबई से स्नेहा देव, दोहा कतर से शालिनी गर्ग व भारत से डॉ प्रतापराव कदम ने भाग लिया। इस आयोजन का संचालन अमेरिका से विनीता तिवारी ने किया। 

इस अवसर पर संतोष चौबे जी ने कहा कि साझा संसार, पिछले पाँच बरस से 'साहित्य का विश्वरंग' आयोजन, वैविध्य के साथ गतिमान है। आज के इस आयोजन में, प्रेम की पवित्रता, पूरी श्रंखला में देखने में आई। उन्होंने बताया कि प्रेम की परिभाषा बहुत व्यापक है। उन्होंने उर्दू और खासकर पंजाबी कहानियों में प्रेम के खुलेपन की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि अब कहानियों में, युवा पीढ़ी में, खुलेपन के साथ प्रेम की अभिव्यक्ति हो रही है। युवा प्रेम में, बराबरी का रिश्ता और महिलाओं की उभरती ताकत के स्वर स्पष्ट सुनाई देते हैं। इस अवसर पर उन्होंने शरतचंद्र चटोपाध्याय और मण्टो की कहानियों की भी चर्चा की और 'मेरे अच्छे दिन हों तब आना' शीर्षक रचना भी सुनाई।

लीलाधर मंडलोई ने कहा कि साहित्य का विश्वरंग आयोजन, हालैंड से प्रकाशित अपनी त्रैमासिक पत्रिका के साथ, भौतिक व ऑनलाइन जगत में अपनी जगह बना चुका है। प्रवास की आवाज से रुबरु भारत-सीमा एक कालखण्ड में विस्तृत हो गई है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रेम अपरिमित है, जमीं से आसमां तक है। हमें धरती, नदी, पहाड़, ग्रह, नक्षत्र, प्रकृति और आसमान की असीमता में ओतप्रोत प्रेम पर, अपने सृजन की रेंज को बढ़ाना चाहिए।

'प्रेम की वह बात' थीम के अन्तर्गत शशि पाधा ने कहा कि प्रेम सर्वव्यापी है। प्रेम ऐसी कोमल अनुभूति है इसे जितना बाँटो उतना ही बढ़ता है। उन्होंने अपने प्रवासी जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि मुझसे बिंदी नहीं छूटी और सोदाहरण प्रकाश डालते हुए बताया कि नये परिवेश में, नयी सीमाओं से जुड़ने के लिए नई रणनीति चाहिए। 

श्वेता सिन्हा ने प्रवास के अपने नितान्त वैयक्तिक पहले पहले अनुभवों बर्फ की अट्ठारह इंच मोटी चादर, अपने पति के हाथ में हाथ की बात, कनाडा के हैल्थ सिस्टम और पड़ौसी कोरियन लेडी की आत्मीयता के बारे में बताया।

शालिनी गर्ग ने कहा कि प्रवास काल का आरम्भिक अनुभव एक अजीब सा अहसास है। जहाँ अजनबी सी शांति है और सुकून भी। उन्होंने अपने अकेलेपन से लेकर हिंदी भाषा के प्रति पनपे प्रेम, हिंदी सीखने और स्कूल में हिंदी पढ़ाने तक की यात्रा पर विस्तार से बताया।

डॉ प्रतापराव कदम ने 'पारु की स्मृति में' नामक शीर्षक, मार्मिक रचना का पाठ किया। यह ऐतिहासिक रचना, अजन्ता एलौरा की पृष्ठभूमि में, रॉबर्ट गिल और पारु की सदियों पुरानी, अद्भुत प्रेम की कहानी, उनके शब्दों में जी उठी।

स्नेहा देव ने अपने दुबई प्रेम के बारे में बताया कि यहाँ के नियम कानून अकाट्य हैं और यहाँ आपसी सौहार्द्र उदाहरणीय है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ईच्छाधारी जीव है और आज की दुबई को बनाने में भारतीयों का अतुलनीय योगदान है। जीवन में एक स्तर पर आकर प्रेम वैश्विक हो जाता है।

साझा संसार के अध्यक्ष व 'साहित्य का विश्व रंग' के आयोजक रामा तक्षक ने स्वागत व धन्यवाद वक्तव्य के साथ 'मुँह पर कपड़ा' शीर्षक के साथ लघुकथा का पाठ किया। इस अवसर पर अमेरिका से अनूप भार्गव, सूरीनाम से सान्द्रा लुटावन तथा भारत से जवाहर कर्नावट, कांता राय, संजय सिंह राठौड़, आशा सिंह, सोनू कुमार, औधेन्द्र पाण्डेय, धारा सिंह आदि उपस्थित रहे।

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